दिले-नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
-गालिब
दर्द को दिल में जगह दो अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी
फलक देता है जिनको ऐश उनको गम भी होते हैं
जहां बजते हैं नक्कारे वहां मातम भी होते हैं
-दाग
नाजुकी उन लबों की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
मीर उन नीमबाज आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
-मीर
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
-मोमिन
जहां बजते हैं नक्कारे वहां मातम भी होते हैं
-दाग
नाजुकी उन लबों की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
मीर उन नीमबाज आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
-मीर
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
-मोमिन
हमन है इश्क, मस्ताना, हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद यों जग से, हमन दुनिया से यारी क्या
-कबीर
लाई हयात आये, कजा ले चली चले
अपनी खुशी न आए, न अपनी खुशी चले
-जौक
रहें आजाद यों जग से, हमन दुनिया से यारी क्या
-कबीर
लाई हयात आये, कजा ले चली चले
अपनी खुशी न आए, न अपनी खुशी चले
-जौक
कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में
-जफर
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
-हसरत जयपुरी
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में
-जफर
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
-हसरत जयपुरी
मता-ए-लौहो-कलम छिन गयी तो क्या गम है
कि खूने-दिल में डुबो लीं हैं उंगलियां मैंने
-फैज अहमद फैज
कहां तो तै था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
-दुष्यंत कुमार
कि खूने-दिल में डुबो लीं हैं उंगलियां मैंने
-फैज अहमद फैज
कहां तो तै था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
-दुष्यंत कुमार
ये नगमासराई है कि दौलत की है तकसीम
इंसान को इंसान का गम बांट रहा हूं
-फिराक
घर लौट के मां-बाप रोएंगे अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
-कैसर उल जाफरी
इंसान को इंसान का गम बांट रहा हूं
-फिराक
घर लौट के मां-बाप रोएंगे अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
-कैसर उल जाफरी
बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
-निदा फाजली
लहू न हो तो कलम तर्जुमां नहीं होता
हमारे दौर में आंसू जवां नहीं होता
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
-निदा फाजली
लहू न हो तो कलम तर्जुमां नहीं होता
हमारे दौर में आंसू जवां नहीं होता
वसीम सदियों की आंखों से देखिए मुझको
वो लफ्ज हूं जो कभी दास्तां नहीं होता
-वसीम बरेलवी
लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है
-मुनव्वर राना
वो लफ्ज हूं जो कभी दास्तां नहीं होता
-वसीम बरेलवी
लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है
-मुनव्वर राना
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
-कुमार विश्वास
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
-कुमार विश्वास
ગુજરાતી શાયરી
ReplyDeleteमैंने आपकी सारी पोस्ट देखी, बहुत अच्छी है ❤️❤️❤️
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Hii
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ReplyDeleteAshish Ranjan
ReplyDeleteAcha blog h bhai aapka....kya yaha chat vgra b ho skti h kya...thoda alg s...normal jankari chaiye thi blog ko lekr
ReplyDeleteMeri mail pe bhejiye
Deletebodrum
ReplyDeletehakkari
şırnak
bağcılar
tekirdağ
SDOL6
Hii
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