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जन्म की तारीख और समय: 13 फ़रवरी 1911, नारोवाल जिला, पाकिस्तान मृत्यु की जगह और तारीख: 20 नवंबर 1984, लाहौर, पाकिस्तान पत्नी: एलिस फ़ैज़ (विवा. 1941–1984) शिक्षा: गवर्नमेन्ट कॉलेज, पंजाब विश्वविद्यालय, Govt Murray College Sialkot, ओरिएंटल कालेज फ़िल्में: द डे शैल डॉन, आगमन
फ़ैज अहमद फ़ैज़ जब यह कहते हैं कि ‘मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे मेहबूब न मांग’ तो सबसे पहला सवाल यही उठता है कि वह शख़्स कौन है, जो अपनी महबूबा को अपनी मजबूरी बताते हुए कह रहा है,
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजै अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजै
क्या यह सिर्फ़ फ़ैज अहमद फ़ैज की आवाज़ है? क्या यह सिर्फ़ उन्हीं का ख़्याल या नज़रिया है? शायद नहीं। यह आवाज़ संभवतः हमारे युगबोध की आवाज़ है, हमारे समय की सच्चाईयों और बदलते ज़रुरत की आवाज़ है। यह वह आवाज़ है जो साहित्य के मयारों को बदलने की बात करती है, उसके उद्देश्यों को बड़ा करके देखने की माँग करती है। लेकिन यह बदलाव इतना अचानक और आक्रामक भी नहीं है कि समूची परम्परा से हमारा नाता ही टूट जाए, बल्कि इसमें पुराने के स्वीकार के साथ उसे नया करने का इसरार है।
और भी दुख हैं, ज़माने में मुहब्बत के सिवा राहतें और भी हैं, वस्ल की राहत के सिवा
रवायत के प्रति रुमान तो इतना कि ग़ालिब और दाग़ के मिसरे भी फ़ैज के यहां मिलते हैं लेकिन वे भी यहाँ आकर अपने नये मायने पाते हैं -
तुम्हें क्या कहूँ कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है हमें ये भी था ग़नीमत जो कोई शुमार होता हमें क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
या फिर
जो गुज़रते थे 'दाग़' पर सदमे अब वही कैफ़ियत सभी की है
यह सभी की कैफ़ियत की सोच ही फैज़ को आवाम की अवाज़ का शायर बनाती है, जब भी कहीं दमन, शोषण था एकाधिकार का ख़तरा दिखाई देता है, बरबस यह निकल ही आता है-
बोल, कि लब आजा़द हैं तेरे बोल, जुबाँ अब तक तेरी है तेरा, सुतवाँ जिस्म है तेरा बोल, कि जाँ अब तक तेरी है
फ़ैज की शायरी व्यक्तिगत हताशा, इश्क़ या उम्मीदी की शायरी नहीं है, यह व्यापक जनता के मोहभंग की आवाज़ है, जो आज़ादी की सुबह भी यह पूछ सकती है -
ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर वो इंतिज़ार था जिस का ये वो सहर तो नहीं
आजा़दी और इसके फलसफे को लेकर यह आलोचनात्मक रवैया फ़ैज के प्रगतिशील रूझान के कारण ही पैदा हुआ था, यह गौरतलब है कि जब 1936 में सज्जाद जहीर, मुल्कराज आनंद आदि लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना कर रहे थे, तो उसी साल फैज ने भी उसकी एक शाखा पंजाब में स्थापित की थी, यह उनके इसी रुझान का सबूत है कि वे कहते हैं -
निसार मैं तेरी गालियों के ऐ वतन कि जहां चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले नज़र चुरा के चले, जिस्म ओ जाँ बचा के चले
फैज़ अहमद फै़ज एक योद्धा शायर हैं। मज़लूमों शोषितों की लड़ाई लड़ने वाले योद्धा ही नहीं बल्कि 1944 से 1947 तक वे ब्रिटिश भारतीय सेना के भी अंग रहे। सेना में उन्हें लेफ्टिनेंट कर्नल का ओहदा हासिल था। लेकिन उनकी लड़ाई के मोर्चे अलग थे। जो आवाम के हक और हकूक की बात करता हो, वह भला किसी का ख़ून बहाने की नौकरी क्योंकर करे?
सजे तो कैसे सजे क़त्ल-ए-आम का मेला किसे लुभाएगा मेरे लहू का वावैला मेरे नज़ार बदन में लहू ही कितना है चराग़ हो कोई रौशन न कोई जाम भरे
वह तो अपने वतन से भी यह पूछ सकता है कि,
तुझको कितनों का लहू चाहिये ऐ अर्ज-ए-वतन जो तिरे आरिज़ –ए-बेरंग को गुलनार करें कितनी आहों से कलेजा तिरा ठंडा होगा कितने आँसू तेरो सहराओं को गुलज़ार करें
लेकिन सामूहिकता के अनुभवों और जनता की आवाज़ बन जाने के बावजूद फैज़ की शायरी में ऐसा कुछ तो मौजूद ही है जो फै़ज़ का बिल्कुल अपना है। फै़ज़ की चेतना फ़ैज़ के व्यक्तित्व से अलग नहीं है। फ़ैज़ का जीवन उनका स्वभाव, उनका अक्खड़पन और निराला अंदाज़ उनकी शायरी का भी मिज़ाज है।
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हमने हौसले परवरदिगार के दोनों जहान तेरी मुहब्बत में हार के वह जा रहा है कोई शबे-ग़म गुज़ार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के
उनके इस मिज़ाज को सत्ता कभी तोड़ नहीं सकी । उनपर मुकदमे चले, उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डाला गया, उन्हें देश निकाला दिया गया। अपने वतन से दूर अंजाने प्रदेश में भी उन्होंने अपने मिज़ाज का सौदा नहीं किया -
हर मंजिल-ए-ग़ुरबत पे गुमाँ होता है घर का बहलाया है हर गाम बहुत दर-ब-दरी ने ये जामा-ए-सद-चाक बदल लेने में क्या था मोहलत ही न दी 'फ़ैज़' कभी बख़िया-गरी ने
1980 के दशक में फ़ैज़ भारत आये थे। इलाहबाद विश्वविद्यालय के बुलाने पर। वहां इलाहाबाद के साहित्यकारों ने उपन्यासकार विभूति नारायण राय के आवास पर उनकी सोहबत का लुत्फ़ उठाया था। वहां लोगों ने उनके ज़ुबान से उनके नग़में सुने। उस महफ़िल में कहानीकार रवीन्द्र कालिया भी थे। उनका मानना था कि फ़ैज़ जितने बड़े और शानदार शायर थे, अपनी नज़्मों को वे उतने ही बुरे अंदाज़ में पढ़ते थे। हो सकता है कालिया जी की बात सच हो, लेकिन वह पढ़ने के अंदाज़ की बात है, जहां तक जीने के अंदाज़ की बात है तो फ़ैज़ का अंदाज़े बयां यह है -
माना कि ये सुनसान घड़ी सख़्त घड़ी है लेकिन मेरे दिल ये तो फ़क़त इक ही घड़ी है हिम्मत करो जीने को तो इक उम्र पड़ी है
दोस्तों मैं आपका दोस्त दीपक बंसल आपके लिए हिंदी के जाने मने कवी डॉक्टर कुमार विश्वास के ऐसे संजीदा शेर लेकर उपस्थित हुआ हूँ ! जो आपके दिल को छू लेगी !
जन्म की तारीख और समय: 10 फ़रवरी 1970 (आयु 51 वर्ष), पिलखुवा
राष्ट्रीयता: भारतीय
पत्नी: मंजू शर्मा
बच्चे: Kuhu Vishwas, Agrata Vishwas
शिक्षा: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ (2000), चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ (1993)
दोस्तो आज का आर्टिकल "Famous Kumar Vishwas Poetry, Shayari" से लिया गया है और इस पोस्ट मे आप पढ़ सकते है जानेमाने हिन्दी कवि डा0 कुमार विश्वास की एक से बढ कर एक शायरियां और कविताओं की चंद लाइनों को जो आप को दिवाना बना देगी.
1. Panahon Main Jo Aaya Ho, Us Par War Kya Karna Jo Dil Hara Hua Ho, Us Par Adhikar Kya Karna
Mohabbt Ka Maza To Dubne Ki Kashmkash Main Hain Jo Ho Malum Gahraayi, To Dariya Paar Kya Karna.
पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना
मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है. जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना.
2. Mere Jeene Marne Main, Tumhara Maam Aayega.
Main Saans Rok Lu Phir Bhi, Yahi ilzaam aayegaa.
Har Ek Dhdkan Main Jab Tum Ho, To Phir Apradh Kya Mera.
Agar Radha Pukarengi, To Ghanshyam Aayega.
मेरे जीने मरने में, तुम्हारा नाम आएगा.
मैं सांस रोक लू फिर भी, यही इलज़ाम आएगा.
हर एक धड़कन में जब तुम हो, तो फिर अपराध क्या मेरा,
अगर राधा पुकारेंगी, तो घनश्याम आएगा.
3.Kahi Par Jag Liye Tum Bin, kahi par so liye tum bin
Bhari mahfil main bhi aksar, Akele ho liye tum bin
Ye pichle chand varshon ki, kamai saath hain apne
Kabhi to hans liye tum bin, Kabhi to ro liye tum bin.
कहीं पर जग लिए तुम बिन, कहीं पर सो लिए तुम बिन.
भरी महफिल में भी अक्सर, अकेले हो लिए तुम बिन
ये पिछले चंद वर्षों की कमाई साथ है अपने कभी तो हंस लिए तुम बिन, कभी तो रो लिए तुम बिन.
कुमार विश्वास शायरी इन हिंदी
4. Girebaan chaak karna kya hain, Seena aur mushkil hain
Har ek pal muskura ke, Ashq peena aur mushkil hain
Humari badnaseebee ne, Hume itna shikhaya hain
Kisi ke ishq main marne se, Jeena aur mushkil hain.
23.Is udaan par ab sharminda, Main bhi hoon aur tu bhi hain.
Aasman se gira parinda, Main bhi hoon aur tu bhi hain.
Chut gayi raste main, Jeene marne ki sari kasme.
Apne apne haal main zinda, Main bhi hoon aur tu bhi hain.
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, में भी हूँ और तू भी है.
आसमान से गिरा परिंदा, में भी हूँ और तू भी है.
छुट गयी रस्ते में, जीने मरने की सारी कसमे.
अपने - अपने हाल में जिंदा, में भी हूँ और तू भी है.
Best Love Shayari By Dr. Kumar Vishwas
24.Tumhare paas hoo.n lekin jo duri hai, Samjhta hun.
Tumhaare bin meri hasti adhoori hai, Samjhta hun.
Tumhe.n main bhool jaaungaa ye Mumkin hai nahi.n lekin.
Tumhi ko bhoolna sabse jaroori hai Samjhta hun.
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ.
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ.
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन.
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ.
Kumar Vishwas Latest Shayari
25. Phalak pe bhor ki dulhan yoon saz ke aai hai, Ye din ugaa hai ya sooraj ke ghar sagaai hai,
Abhi bhi aate hai aansoon meri kahani mein, Kalam mein shukrae-khuda hai ki Raushnaai hai .
फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है, ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है,
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में, कलम में शुक्र-ए- खुदा है कि रौशनाई है.
All Shayari Of Dr. Kumar Vishwas In Hindi
26. Kalam ko khoon mein khud ke dubota hoon to hungama, Gireban apna aansoon mein bhigota hoon to hungama,
Nahin mujh par bhi jo khud ki khabar wo hai zamaane par, Main hansta hoon to hungama, main rota hoon to hungama.
क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा, गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा.
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर, मैं हँसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा.
27. Bhramar koi kumudani par machal baitha to hungama Humare dil main koi khwab pal baitha to hungama
Abhi tak doob kar sunte the sab kissa mohabbt ka Main kisse ko hakikat main badal baitha to hungama.
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा.
28.Wo jiska teer chupke se jigar ke paar hota hain Wo koi gaer kya apna hi ristedaar hota hain
Kisi se apne dil ki baat tu kahna na bhule se Yaha khat bhi thodi der main akhbaar hota hain.
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है.
कुमार विश्वास शायरी इन हिंदी
29. Koi patthar ki murat hain, kisi patthr main murat hain Lo humne dekh lee duniya, jo itni khubsurat hain
Zamana apni samjhe par, mujhe apni khabr yah hain Tujhe meri jarurat hain. mujhe teri jarurat hain. कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है
जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है.
30.Koi deewan kahta hain, koi pagal samjhta hain Magar dharti ki baicheni to, bas badal samjhta hain
Main tumse dur kitna hun, tu mujhse dur kitni hain Ye tera dil samjhta hain, ya mera dil samjhta hain.
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है मगर धरती की बैचेनी तो, बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कितना हु , तू मुझसे दूर कितनी है ये तेरा दिल समझता है , या मेरा दिल समझता है.
31.Hame maloom hai do dil judaai sah nahi,n sakte Magar rasme-wafa ye hai ki ye bhi kah nahi sakte
Zara kuchh der tum un saahillon ki cheekh sun bhar lo
Jo laharo.n mein to doobe hai, Magar sang bah nahi.n sakte
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते.
32. Usi ki taraha mujhe saara zamaana chaahe Wo mera hone se jyaada mujhe paana chaahe
Meri palkon se fisal jaata hai chehara tera Ye musafir to koi thikana chaahe.
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे.
All Shayari Of Dr. Kumar Vishwas In Hindi
33.Tum amar raag-mala bano to sahi, Ek paawan shiwala bano to sahi,
Log padh lenge tum se sabak pyaar ka, Preet ki paathshaala bano to sahi.
अमर राग-माला बनो तो सही, एक पावन शिवाला बनो तो सही,
लोग पढ़ लेंगे तुम से सबक प्यार का, प्रीत की पाठशाला बनो तो सही.
34= Badalne ko in aankhon ke manjar kam nahi badal, Tumhaari yaad ke mausam, humare gham nahin badle,
Tum agale janm mein hum se milogi, tab to manogi, Zamaane aur sadi ki is badal mein hum nahin badale.
बदलने को तो इन आखोँ के मंज़र कम नहीं बदले , तुम्हारी याद के मौसम,हमारे ग़म नहीं बदले ,
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी,तब तो मानोगी , ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले.
Kumar Vishwas Latest Shayari
35. Mohabbat ek ahsaason ki pawan si kahani hain Kabhi Kabira deewana tha, kabhi Meera deewani hain
Yaha sab log kahte hain, meri aankhon mein paani hain Jo tum samjho to moti hain, jo na samjho to paani hain.
मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखों में पानी है जो तुम समझो तो मोती है, जो ना समझो तो पानी है.
हेलो दोस्तों कैसे है आप सभी मैं आपका दोस्त दीपक बंसल फिर एक आर्टिकल के साथ आप लोगो के सामने पेश हुआ हूँ!
वैसे तो पॉलिटिक्स पर लिखना मेरा पसंदीदा विषय रहा हैं ! पर ये ऐसा गन्दा विषय हैं ! जिस पर जितनी बात की जाये गंद ही बाहर आएगी ! मैंने कई बार इस विषय पर लिखा और आगे भी लिखता रहूँगा !पर आज कुछ अलग लिखने का मन है ! देश में हर बंदा दुःखी है ! सब इतने ज्यादा डिप्रेशन में है! की अगर आपसे कोई गलती हो जाये आपकी गाड़ी भी किसी से टकरा जाये तो वो बंदा अपनी सारी फ़्रस्टेशन आप पर निकल देगा ! क्या कभी आपने सोचा ऐसा क्यों हो रहा है ! इन सबका जिम्मेदार कौन है ! क्यों आप इतने ज्यादा इन सबसे प्रभावित हो !
सोचा कुछ आया दिमाग़ मैं कुछ कहेंगे मोदी कुछ कहेंगे कांग्रेस इन सबकी जिम्मेदार है ! पर वास्तिविकता में इन सबके पीछे और कोई नहीं हमारी आदते ! और सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, न्यूज़ चैनल इन सबसे जल्दी से प्रभावित होने वाली हमारी आदते है ! आप सोचिये आमिर खान जैसे आदमी को जिसके जीवन में क्या परेशानी होगी ! उसे में भी मोबाइल से कुछ समय दूर रहने का निर्णय लेना पड़ा ! क्यों ??
मीडिया के हर माध्यम आपको परेशान कर रहे है ! आज आप खुद सोचिये आपकी अधिकतर फ़्रस्टेशन नफरत की है ! जो इस मीडिया ने भरी है ! लोग आत्महत्या कर रहे है ! दूसरे को दुखी देख कर खुश हो रहे है ! जबकि पहले ऐसा नहीं था ! लोग एक दूसरे की खुशी में खुश रहते थे !
मैं ये नहीं कहता आप मोबाइल छोड़े ! आप नेट से दुरी बनाये !निर्धारित करे , की सिर्फ इतने समय ही हमे नेट का इस्तेमाल करना है ! उससे आप खुद कुछ समय में समझने लग जायगे की आप क्यों इतना परेशान थे जबकि इतनी टेंशन की कोई वजह थी ही नहीं !आज हमारे माता पिता या दादाजी वगेरा जो की पैड वाला मोबाइल यूज़ करते है ! वो हमसे ज्यादा खुश है ! जबकि उन्हें शारीरिक कितनी समस्याए है ! उसके बाद भी वो खुश है !
राजनीति हो या कोई और सब मीडिया के माध्यम से सिर्फ और सिर्फ नफरत बाँट रहे है ! और इसी का असर हमारी निजी दिनचर्या पर पड़ रहा है ! नेट मीडिया से कुछ समय की दुरी बहुत है जरूरी !
खुशी के पल हो साथ तो इसमें है परिवार का हाथ ! तो जीना है जरूरी नफरत से ना करो इसको पूरी ! बस इसी छोटे से सन्देश के साथ आप लोगो से विदा चाहता हूँ जल्द ही मिलुंगा कुछ नए मुद्दों के साथ तब तक के लिए आप सभी की खुशी की कामना के साथ विदा !
आप सबको एक बार ये आर्टिकल की हेडलाइंस देख के आश्चर्य हुआ होगा पर मैं इस आर्टिकल के माध्यम से आप लोगो को उस भयावक स्थिति से रूबरू करवाऊंगा ! जिससे आपको खुद को एहसास होगा की ये कोरोना मरीज घूम रहे है ! या ज़ॉम्बीज़ !(उन्ही लोगो के लिए जो कोरोना से संक्रमित होने के बाद भी घूम रहे है )
पहले में आपको बता दू ज़ॉम्बीज़ होते क्या है ! जैसा की फिल्मों में दर्शाया जाता है ! उसी को मद्देनजर रखते हुए ! ज़ॉम्बीज़ वो ज़िंदा लाशे है जो एक दूसरे को संक्रमित करती जाती है ! और बिना संक्रमण के लोग उनसे डर के इधर उधर छुपते रहते है !
उसी तरह कोरोना से ग्रसित वह लोग जो जान कर अपनी बीमारी दुसरो तक पहुंचा रहे है ! वो उन ज़ॉम्बीज़ से कम नहीं जिनका खुद के मस्तिष्क पर किसी तरह का कंट्रोल नहीं है ! वह अपनी बीमारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचना चाहते है !
मैं यहां किसी धर्म, या समुदाय का नाम नहीं लूगा! क्योकि देश में जिस तरह का माहौल है लोगो को २ मिनट नहीं लगेंगे इसे धर्म से जोड़ने में, फिर लोगो के मन में फिर एक गुस्से का माहौल पैदा हो जायगा ! और इन सवालो के जवाब एक आम नागरिक के द्वारा देना बहुत ही खतरनाक हो जयगा!
चलिए हम अब बात करते है ज़ॉम्बीज़ की आप सभी सिर्फ एक बार इस भयावक स्थिति के बारे में सोचिये ! क्या हो अगर आपके घर के बाहर ज़ॉम्बीज़ घूम रहे हो क्या आप घर से बाहर निकल पाएंगे ? नहीं ना, क्योकि आपको ज़ॉम्बीज़ दिखाई दे रहे है ! आप उनसे डरते है ! वास्तिविकता ये हे की दिखने वाला ज़ॉम्बीज़ कम खतरनाक है बजाय नहीं दिखने वाले कोरोना से आप देखके किसी से बच सकते है पर जो चीज दिखाई ना दे उससे कैसे बचेंगे ! क्योकि आप खुद जरिया हो उसको फैलाने आप ही नहीं आपकी हर वास्तु जरिया है !
DAR
इसी का तो फायदा संक्रमित मानसिकता वाले ज़ॉम्बीज़ उठा रहे है और आप घर से बाहर निकलके उनका काम आसान कर रहे है ! लोग रोज बहाने बनाके घर से बाहर जा रहे है ! सिगरेट,पान मसाले के लिए घूम रहे है ! कुछ लोग इसका फायदा उठा कर ब्लैक में उनकी रेट्स बड़ा के बेच रहे है !
ये जो कुछ नहीं होगा वाला ऐटिटूड जो आपमें है ना उस दिन बड़ा दुःख देगा जब आप भी उसी चैन में शामिल होके अपने पुरे परिवार को संक्रमित कर दोगे ! सोचिये , क्या हो जब आपके फैलाये संक्रमण से आपके किसी करीबी की जान चली जाये ! डर लगा ! नहीं लगा तो फिर आप घूम सकते है ! क्योंकि आपके लिए जब रिश्ते ही माईने नहीं रखते तो आप अन्य लोगो की कहाँ सोचेंगे !
वैसे आप अकेले नहीं है जो ज़ॉम्बीज़ को बड़ा रहे है ! कर्नाटक प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी इस रेस में शामिल है जो अपने बेटे की शादी में १०० से अधिक लोगो को एकत्रित कर पता नहीं कौनसा ख़िताब जितना चाह रहे थे !
एक मुख्यमंत्री अपने पिता के दाह संस्कार में नहीं जा रहा और एक आयोजन कर रहा है !
वैसे तो अगर में इस मुद्दे को राजनीती से जोड़ूंगा! तो अभी बहुत से लोग इसे भी बीजेपी कांग्रेस का मुद्दा बना देंगे ! और इस आपात समय में मैं उस मुद्दे को उजागर नहीं करुँगा ! उसपे भी लेख है ! पर उसपे सम्पूर्ण प्रकाश इस आपदा के माहौल के बाद प्रकाशित करुँगा ! क्योंकि यह समय राजनैतिक बुराईया निकलने का नहीं एक दूसरे का सहयोग करने का है ! जो हमारे राजनेता भी समझ जाये तो इस आपदा से हम निकल जायँगे !
बस आप सभी लोगो से यही गुजारिश है ऐसा वक़्त ना आ जाये की लोग हमेशा के लिए घरो में कैद हो जाये और कोरोना रूपी ज़ोंबी बाहर घूमता रहे ! कोई भी भूखा न सोये इसके लिए तत्पर रहे ! डॉक्टर ,पुलिस का सहयोग करे ! अपने परिवार जन की सेहत का ख्याल रखे! जय हिन्द जय भारत !