Tuesday, 21 January 2025

SHYAR SONG

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...

SHAYAR PUNJABI SONG:

Tu Shayar Banaagi Aye


Haye Ni Iss Pagal Nu

Kehde Kaami La Gayi Ae

Haye Ni Iss Pagal Nu

Ho Jaape Meri Zindagi Cho

Jiven Sare Cha Mukk Gaye

Tainu Main Bhulava Ni

Ohh Injh Lage Saah Ruk Gaye

Ni Injh Lage Saah Ruk Gaye

Diti Teri Gaani


Pyar Nishani

Hun Faaha Lage Gal Nu

Tu Shayar Banagi Ae

Haye Ni Iss Pagal Nu

Ni Kade Kaami Laa Gayi Ae

Haaye Ni Iss Pagal Nu

Kita Tainu Pyar Se Naare

Hadha Bane Tod Ke Saare

Tu Ta Chaleyae Dil Tod Gayi

Mai Tere Lai Toda Taare

Jakham Jo Deh Gayi Ae

Cheti Oho Parne Nai

Ni Jheda Dukh Main Jarda

Hor Ne Jarne Ne

Ni Buk Buk Rova Main

Ekala Jido Hova Main

Yaad Kar Har Gal Nu

Tu Shayar Banagi Aye

Haye Ni Iss Pagal Nu

Ni Kade Kaami Laa Gayi Ae

Haye Ni Iss Pagal Nu

Teri Jagha Sharab Ne Le li

Ditta Tere Gulab Ne Le Layi

Main Ta Hun Dass Ki Jena Hai

Mere Jind Tere Khwab Ne Le Li

Ni Parry Tera Geet Likhda

Kalam Vi Rondi Ae

Ni Jina Cher Mai Jagda

Ae Vi Kithe Saundi Ae

Ni Akh Teri Fadke Ge

Tu Vi Mainu Tadfeh Ge

Main Na Par Hona Kal Nu

Tu Shayar Banagi Aye

Haye Ni Iss Pagal Nu

Ni Kade Kaami Laa Gayi Ae

Haye Ni Iss Pagal Nu

ये भी पढ़िए :1. imran hasmi songs

Monday, 20 January 2025

MAHKUMBH AASTHA

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...

MAHKUMBH AASTHA



महाकुंभ के आयोजन की तैयारियां जोरों शोरों पर चल रही है और इसे लेकर लोगों में काफी उत्साह भी देखने को मिल रहा है आपको बता दें कि यूपी यानी उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 144 वर्षों के बाद साल 2025 में महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है। इस बार महाकुंभ में 40 से 45 करोड़ श्रद्धालुओं और भक्तों के आने का अनुमान लगाया जा रहा है। जिसे देखते हुए सुविधाओं के इंतजाम भी उसी स्तर से किए जा रहे हैं। पंचांग के अनुसार इस बार महाकुंभ का मेला पौष पूर्णिमा से आरंभ हो चुका है और महाशिवरात्रि तक चलेगा!


प्रयागराज में इससे पहले साल 2013 में महाकुंभ मेले का आयोजन किया गया था। लेकिन इस बार का महाकुंभ मेला उससे भी कहीं अधिक दिव्य और विराट है। क्योंकि इस महाकुंभ पर स्वयं पीएम मोदी और सीएम योगी की नजरें बनी हुई हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा महाकुंभ से जुड़ी जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं।

आपको बता दें कि महाकुंभ का भव्य मेला हर 12 साल में एक बार लगता है इसकी बड़ी वजह धार्मिक मान्यता है जिसके अनुसार कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। बताया जाता है कि जब देवता और असुरों ने मिलकर मंथन किया था उस वक्त जो अमृत निकला। इस अमृत को पीने के लिए दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। यह युद्ध पूरे 12 दिनों तक चला था। कहते हैं कि यह 12 दिन पृथ्वी पर 12 सालों के बराबर थे। इसलिए कुंभ का मेला 12 साल में एक बार आता है।

वही इससे जुड़ी दूसरी मान्यता है कि समुद्र मंथन में अमृत के छींटे 12 स्थान पर गिरे थे इनमें से चार पृथ्वी पर थे। यही कारण हे कि इन चार स्थानों पर ही महाकुंभ का मेला हर बार लगता है। वहीं कुछ ज्योतिषों का मानना है कि गुरु बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12 राशियों का चक्कर लगाते हैं। इसलिए कुंभ मेले का आयोजन भी उस समय होता है जब गुरु बृहस्पति ग्रह किसी विशेष राशि में होते हैं।

ये भी पढ़िए :- TUM MILE
२. 20 BADE SHAYARO KE MASHUR SHER




Wednesday, 15 January 2025

IMRAN HASMI TOP SONG

Shayar ki Kalam se dil ke Arman....


1.TUM MILE:-

तू ही मेरी है सारी ज़मीन चाहे कहीं से चलूं तुझपे ही आके रुकु...
तेरे सिवा मैं जाऊँ कहाँ कोई भी राह चुनूं तुझपे ही आके रुकु...

तुम मिले तो लम्हे थम गये, तुम मिले तो सारे गम गये, तुम मिले तो मुस्कुराना आ गया...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...

तुझमे किनारा दिखे, दिल को सहारा दिखे, आ मेरी धड़कन थाम ले...
तेरी तरफ ही मुड़े, यह साँस तुझसे जुड़े, हर पल ये तेरा नाम ले...

तुम मिले तो अब क्या है कमी, तुम मिले तो दुनिया मिल गयी, तुम मिले तो मिल गया आसरा...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...

दिन मेरे तुझसे चले, रातें भी तुझसे ढले, है वक़्त तेरे हाथ मे...
तू ही शहेर है मेरा, तुझमे ही घर है मेरा, रहता है तेरे साथ मे...

तुम मिले तो मिल गया हमसफ़र, तुम मिले तो खुद की है खबर, तुम मिले तो रिश्ता सा बन गया...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...





2. DIL IBADAT KAR RHA HAI...

दिल इबादत कर रहा है
धड़कने मेरी सुन
तुझको मैं कर लूँ हासिल
लगी है यही धून

ज़िंदगी की शाख से लूँ
कुछ हसीन पल मैं चुन
तुझको मैं कर लू हासिल
लगी है यही धून



ओ सियो लेयो समा लेयो
सीयो लेयो आ..
ओ सियो लेयो समा लेयो
सीयो लेयो आ..

दिल इबादत कर रहा है,
धड़कने मेरी सुन
तुझको मैं कर लूँ हासिल
लगी है यही धून

ज़िंदगी की शाख से लूँ
कुछ हसीन पल मैं चुन
तुझको मैं कर लू हासिल
लगी है यही धून



जो भी जीतने पल जियूँ
उन्हें तेरे संग जियूँ
जो भी कल हो अब मेरा
उसे तेरे संग जियूँ

जो भी साँसे मैं भरूं
उन्हें तेरे संग भरूं
चाहे जो हो रास्ता, उसे तेरे संग चलूं

दिल इबादत कर रहा है
धड़कने मेरी सुन
तुझको मैं कर लूं हासिल
लगी है यही धून

मुझको दे तू मिट जाने
अब खुदसे दिल मिल जाने
क्यूँ है ये इतना फासला
लम्हें ये फिर ना आने
इनको तू ना दे जाने
तू मुझपे खुदको दे लूटा

तुझे तुझसे तोड़ लूं
कहीं खुदसे जोड़ लूं
मेरे जिस्म-ओ-जान मैं आ
तेरी खुशबू ओढ़ लूँ

जो भी साँसे मैं भरूं
उन्हें तेरे संग भरूं
चाहे जो हो रास्ता, उसे तेरे संग चलूं

दिल इबादत कर रहा है
धड़कने मेरी सुन
तुझको मैं करलूं हासिल
लगी है यही धून

बाहों में दे बस जाने, सिने में दे छुप जाने
तुझ बिन मैं जाऊं तो कहां
तुझसे है मुझे को पाने
यादों के वो नज़राने
एक जिन पे हक़ हो बस मेरा

तेरी यादो में रहूँ, तेरे ख्वाबो में जगूं
मुझे ढूंढे जब कोई, तेरी आँखो में मिलूं

जो भी साँसे मैं भरूं
उन्हें तेरे संग भरूं
चाहे जो हो रास्ता, उसे तेरे संग चलूं

दिल इबादत कर रहा है
धड़कने मेरी सुन
तुझको मैं करलूं हासिल
लगी है यही धून
ना.. ना… न.. ना ना


Tuesday, 11 October 2022

20 BADE SHAYARO KE MASHUR SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...

हिंदी और उर्दू साहित्य में बड़े से बड़े कवियों और शायरों ने इश्क, दुनिया, दोस्ती, असबाब, गम, बेवफाई, रुसवाई सहित कई पहलुओं पर अपनी कविताएं और शायरी लिखी हैं। काव्य चर्चा सेक्शन के तहत यहां हम 20 बड़े शायरों के 20 बड़े शेर पेश कर रहे हैं।


दिले-नादां तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है
-गालिब


दर्द को दिल में जगह दो अकबर
इल्म से शायरी नहीं होती
-अकबर इलाहाबादी


फलक देता है जिनको ऐश उनको गम भी होते हैं
जहां बजते हैं नक्कारे वहां मातम भी होते हैं
-दाग


नाजुकी उन लबों की क्या कहिए
पंखुड़ी एक गुलाब की सी है
मीर उन नीमबाज आंखों में
सारी मस्ती शराब की सी है
-मीर


तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
-मोमिन


हमन है इश्क, मस्ताना, हमन को होशियारी क्या
रहें आजाद यों जग से, हमन दुनिया से यारी क्या
-कबीर



लाई हयात आये, कजा ले चली चले
अपनी खुशी न आए, न अपनी खुशी चले
-जौक



कितना है बदनसीब जफर दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में
-जफर



दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तेरा कोठे पे नंगे पांव आना याद है
-हसरत जयपुरी


मता-ए-लौहो-कलम छिन गयी तो क्या गम है
कि खूने-दिल में डुबो लीं हैं उंगलियां मैंने
-फैज अहमद फैज



कहां तो तै था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
-दुष्यंत कुमार


ये नगमासराई है कि दौलत की है तकसीम
इंसान को इंसान का गम बांट रहा हूं
-फिराक



घर लौट के मां-बाप रोएंगे अकेले में
मिट्टी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में
-कैसर उल जाफरी


बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता
-निदा फाजली



लहू न हो तो कलम तर्जुमां नहीं होता
हमारे दौर में आंसू जवां नहीं होता



वसीम सदियों की आंखों से देखिए मुझको
वो लफ्ज हूं जो कभी दास्तां नहीं होता
-वसीम बरेलवी



लिपट जाता हूं मां से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है
-मुनव्वर राना



कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है



मैं तुझसे दूर कैसा हूं, तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
-कुमार विश्वास

Tuesday, 9 August 2022

KALIDAS KI MASHUR KAVITAYE

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...


कालिदास के जन्मस्थान के बारे में विवाद है। मेघदूतम् में उज्जैन के प्रति उनकी विशेष प्रेम को देखते हुए कुछ लोग उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं।

साहित्यकारों ने ये भी सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा गांव में हुआ था। कालिदास ने यहीं अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी औऱ यहीं पर उन्होंने मेघदूत, कुमारसंभव औऱ रघुवंश जैसे महाकाव्यों की रचना की थी। कविल्ठा चारधाम यात्रा मार्ग में गुप्तकाशी में स्थित है। गुप्तकाशी से कालीमठ सिद्धपीठ वाले रास्ते में कालीमठ मंदिर से चार किलोमीटर आगे कविल्ठा गांव स्थित है। कविल्ठा में सरकार ने कालिदास की प्रतिमा स्थापित कर एक सभागार का भी निर्माण करवाया है जहां पर हर साल जून माह में तीन दिनों तक गोष्ठी का आयोजन होता है, जिसमें देशभर के विद्वान भाग लेते हैं।

कालिदास के प्रवास के कुछ साक्ष्य बिहार के मधुबनी जिला के उच्चैठ में भी मिलते हैं। कहा जाता है विद्योतमा (कालिदास की पत्नी) से शास्त्रार्थ में पराजय के बाद कालिदास यहीं गुरुकुल में रुके। कालिदास को यहीं उच्चैठ भगवती से ज्ञान का वरदान मिला। यहां आज भी कालिदास का डीह है। यहाँ की मिट्टी से बच्चों के प्रथम अक्षर लिखने की परंपरा आज भी यहाँ प्रचलित है।

कुछ विद्वानों ने तो उन्हें बंगाल और उड़ीसा का भी सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। कहते हैं कि कालिदास की श्रीलंका में हत्या कर दी गई थी लेकिन विद्वान इसे भी कपोल-कल्पित मानते हैं।


कालिदास की मशहूर कविताएं :



[सावधानम् - अत्र नैके देषास् सन्ति।]
कश्चित्कान्ताविरहगुरुणा स्वाधिकारात्प्रमत्तः
शापेनास्तंगमितमहिमा वर्षभोग्येण भर्तुः
यक्षश्चक्रे जनकतनयास्नानपुण्योदकेषु
स्निग्धच्छायातरुषु वसतिं रामगिर्याश्रमेषु॥१.१॥

तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्तः स कामी
नीत्वा मासान् कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठः
आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श॥१.२॥

तस्य स्थित्वा कथमपि पुरः कौतुकाधानहेतो
रन्तर्बाष्पश्चिरमनुचरो राजराजस्य दध्यौ
मेघालोके भवति सुखिनोऽप्यन्यथावृत्ति चेतः
कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने किं पुनर्दूरसंस्थे॥१.३

प्रत्यासन्ने नभसि दयिताजीवितालम्बनार्थी
जीमूतेन स्वकुशलमयीं हारयिष्यन्प्रवृत्तिम
स प्रत्यग्रैः कुटजकुसुमैः कल्पितार्घाय तस्मै
प्रीतः प्रीतिप्रमुखवचनं स्वागतं व्याजहार॥१.४॥

धूमज्योतिःसलिलमरुतां संनिपातः क्व मेघः
सन्देशार्थाः क्व पटुकरणैः प्राणिभिः प्रापणीयाः
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन् गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतएषु॥१.५॥

जातं वंशे भुवनविदिते पुष्करावर्तकानां
जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः
तेनार्थित्वं त्वयि विधिवशाद् दूरबन्धुर्गतोऽहं
याच्ञा मोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा:॥१.६॥

संतप्तानां त्वमसि शरणं तत्पयोद प्रियायाः
संदेशं मे हर धनपतिक्रोधविश्लेषितस्य
गन्तव्या ते वसतिरलका नाम यक्षेश्वराणां
बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिकाधौतहर्म्या॥१.७॥

त्वामारूढं पवनपदवीमुद्गृहीतालकान्ताः
प्रेक्षिष्यन्ते पथिकवनिताः प्रत्ययादाश्वसन्त्यः
कः संनद्धे विरहविधुरां त्वय्युपेक्षेत जायां
न स्यादन्योऽप्यहमिव जनो यः पराधीनवृत्तिः॥१.८॥

त्वां चावश्यं दिवसगणनातत्पराम एकपत्नीम
अव्यापन्नाम अविहतगतिर द्रक्ष्यसि भ्रातृजायाम
आशाबन्धः कुसुमसदृशं प्रायशो ह्य अङ्गनानां
सद्यः पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि॥१.९॥

मन्दं मन्दं नुदति पवनश चानुकूलो यथा त्वां
वामश चायं नदति मधुरं चातकस ते सगन्धः
गर्भाधानक्षणपरिचयान नूनम आबद्धमालाः
सेविष्यन्ते नयनसुभगं खे भवन्तं बलाकाः॥१.१०॥

कर्तुं यच च प्रभवति महीम उच्चिलीन्ध्राम अवन्ध्यां
तच च्रुत्वा ते श्रवणसुभगं गर्जितं मानसोत्काः
आ कैलासाद बिसकिसलयच्चेदपाथेयवन्तः
संपत्स्यन्ते नभसि भवतो राजहंसाः सहायाः॥१.११॥

आपृच्चस्व प्रियसखम अमुं तुङ्गम आलिङ्ग्य शैलं
वन्द्यैः पुंसां रघुपतिपदैर अङ्कितं मेखलासु
काले काले भवति भवतो यस्य संयोगम एत्य
स्नेहव्यक्तिश चिरविरहजं मुञ्चतो बाष्पमुष्णम॥१.१२॥

मर्गं तावच चृणु कथयतस त्वत्प्रयाणानुरूपं
संदेशं मे तदनु जलद श्रोष्यसि श्रोत्रपेयम
खिन्नः खिन्नः शिहरिषु पदं न्यस्य गन्तासि यत्र
क्षीणः क्षीणः परिलघु पयः स्रोतसां चोपभुज्य॥१.१३॥

अद्रेः शृङ्गं हरति पवनः किं स्विद इत्य उन्मुखीभिर
दृष्टोत्साहश चकितचकितं मुग्धसिद्धाङ्गनाभिः
स्थानाद अस्मात सरसनिचुलाद उत्पतोदङ्मुखः खं
दिङ्नागानां पथि परिहरन स्थूलहस्तावलेपान॥१.१४॥

रत्नच्चायाव्यतिकर इव प्रेक्ष्यमेतत्पुरस्ताद
वल्मीकाग्रात प्रभवति धनुःखण्डम आखण्डलस्य
येन श्यामं वपुर अतितरां कान्तिम आपत्स्यते ते
बर्हेणेव स्फुरितरुचिना गोपवेषस्य विष्णोः॥१.१५॥

त्वय्य आयन्तं कृषिफलम इति भ्रूविकारान अभिज्ञैः
प्रीतिस्निग्धैर्जनपदवधूलोचनैः पीयमानः
सद्यःसीरोत्कषणसुरभि क्षेत्रम आरुह्य मालं
किंचित पश्चाद व्रज लघुगतिर भूय एवोत्तरेण॥१.१६॥

त्वाम आसारप्रशमितवनोपप्लवं साधु मूर्ध्ना
वक्ष्यत्य अध्वश्रमपरिगतं सानुमान आम्रकूटः
न क्षुद्रो ऽपि प्रथमसुकृतापेक्षया संश्रयाय
प्राप्ते मित्रे भवति विमुखः किं पुनर यस तत्थोच्चैः॥१.१७॥

चन्नोपान्तः परिणतफलद्योतिभिः काननाम्रैस
त्वय्य आरूढे शिखरम अचलः स्निग्धवेणीसवर्णे
नूनं यास्यत्य अमरमिथुनप्रेक्षणीयाम अवस्थां
मध्ये श्यामः स्तन इव भुवः शेषविस्तारपाण्डुः॥१.१८॥

स्थित्वा तस्मिन वनचरवधूभुक्तकुञ्जे मुहूर्तं
तोयोत्सर्गद्रुततरगतिस तत्परं वर्त्म तीर्णः
रेवां द्रक्ष्यस्य उपलविषमे विन्ध्यपादे विशीर्णां
भक्तिच्चेदैर इव विरचितां भूतिम अङ्गे गजस्य॥१.१९॥

{अध्वक्लान्तं प्रतिमुखगतं सानुमानाम्रकूटस
तुङ्गेन त्वां जलद शिरसा वक्ष्यति श्लाघमानः
आसारेण त्वम अपि शमयेस तस्य नैदाघम अग्निं
सद्भावार्द्रः फलति न चिरेणोपकारो महत्सु॥१.१९अ}॥

तस्यास तिक्तैर वनगजमदैर वासितं वान्तवृष्टिर
जम्बूकुञ्जप्रतिहतरयं तोयम आदाय गच्चेः
अन्तःसारं घन तुलयितुं नानिलः शक्ष्यति त्वां
रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय॥१.२०॥

नीपं दृष्ट्वा हरितकपिशं केसरैर अर्धरूढैर
आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश चानुकच्चम
जग्ध्वारण्येष्व अधिकसुरभिं गन्धम आघ्राय चोर्व्याः
सारङ्गास ते जललवमुचः सूचयिष्यन्ति मार्गम॥१.२१॥

अम्भोबिन्दुग्रहणचतुरांश चातकान वीक्षमाणाः
श्रेणीभूताः परिगणनया निर्दिशन्तो बलाकाः
त्वाम आसाद्य स्तनितसमये मानयिष्यन्ति सिद्धाः
सोत्कम्पानि प्रियसहचरीसंभ्रमालिङ्गितानि॥१.२२॥

उत्पश्यामि द्रुतमपि सखे मत्प्रियार्थं यियासोः
कालक्षेपं ककुभसुरभौ पर्वते पर्वेते ते
शुक्लापाङ्गैः सजलनयनैः स्वागतीकृत्य केकाः
प्रतुद्यातः कथम अपि भवान गन्तुम आशु व्यवस्येत॥१.२३॥

पाण्डुच्चायोपवनवृतयः केतकैः सूचिभिन्नैर
नीडारम्भैर गृहबलिभुजाम आकुलग्रामचैत्याः
त्वय्य आसन्ने परिणतफलश्यामजम्बूवनान्ताः
संपत्स्यन्ते कतिपयदिनस्थायिहंसा दशार्णाः॥१.२४॥

तेषां दिक्षु प्रथितविदिशालक्षणां राजधानीं
गत्वा सद्यः फलम अविकलं कामुकत्वस्य लब्धा
तीरोपान्तस्तनितसुभगं पास्यसि स्वादु यस्मात
सभ्रूभङ्गं मुखम इव पयो वेत्रवत्याश चलोर्मि॥१.२५॥

नीचैराख्यं गिरिम अधिवसेस तत्र विश्रामहेतोस
त्वत्सम्पर्कात पुलकितम इव प्रौढपुष्पैः कदम्बैः
यः पुण्यस्त्रीरतिपरिमलोद्गारिभिर नागराणाम
उद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभिर यौवनानि॥१.२६॥

विश्रान्तः सन व्रज वननदीतीरजानां निषिञ्चन्न
उद्यानानां नवजलकणैर यूथिकाजाल्कानि
गण्डस्वेदापनयनरुजाक्लान्तकर्णोत्पलानां
चायादानात क्षणपरिचितः पुष्पलावीमुखानाम॥१.२७॥

वक्रः पन्था यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तराशां
सौधोत्सङ्गप्रणयविमुखो मा स्म भूर उज्जयिन्याः
विद्युद्दामस्फुरितचक्रितैस तत्र पौराङ्गनानां
लोलापाङ्गैर यदि न रमसे लोचनैर वञ्चितो ऽसि॥१.२८॥

वीचिक्षोभस्तनितविहगश्रेणिकाञ्चीगुणायाः
संसर्पन्त्याः स्खलितसुभगं दर्शितावर्तनाभः
निर्विन्ध्यायाः पथि भव रसाभ्यन्तरः संनिपत्य
स्त्रीणाम आद्यं प्रणयवचनं विभ्रमो हि प्रियेषु॥१.२९॥

वेणीभूतप्रतनुसलिला ताम अतीतस्य सिन्धुः
पाण्डुच्चाया तटरुहतरुभ्रंशिभिर्जीर्णपर्णैः
सौभाग्यं ते सुभग विरहावस्थया व्यञ्जयन्ती
कार्श्यं येन त्यजति विधिना स त्वयैवोपपाद्यः॥१.३०॥

प्राप्यावन्तीन उदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान
पूर्वोद्दिष्टाम उपसर पुरीं श्रीविशालां विशालाम
स्वल्पीभूते सुचरितफले स्वर्गिणां गां गतानां
शेषैः पुण्यैर हृतम इव दिवः कान्तिमत खण्डम एकम॥१.३१॥

दीर्घीकुर्वन पटु मदकलं कूजितं सारसानां
प्रत्यूषेषु स्फुटितकमलामोदमैत्रीकषायः
यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिम अङ्गानुकूलः
शिप्रावातः प्रियतम इव प्रार्थनाचाटुकारः॥१.३२॥

हारांस तारांस तरलगुटिकान कोटिशः शङ्कशुक्तीः
शष्पश्यामान मरकतमणीन उन्मयूखप्ररोहान
दृष्ट्वा यस्यां विपणिरचितान विद्रुमाणां च भङ्गान
संलक्ष्यन्ते सलिलनिधयस तोयमात्रावशेषाः॥१.३३॥

प्रद्योतस्य प्रियदुहितरं वत्सराजो ऽत्र जह्रे
हैमं तालद्रुमवनम अभूद अत्र तस्यैव राज्ञः
अत्रोद्भ्रान्तः किल नलगिरिः स्तम्भम उत्पाट्य दर्पाद
इत्य आगन्तून रमयति जनो यत्र बन्धून अभिज्ञः॥१.३४॥

जालोद्गीर्णैर उपचितवपुः केशसंस्कारधूपैर
बन्धुप्रीत्या भवनशिख्जिभिर दत्तनृत्योपहारः
हर्म्येष्व अस्याः कुसुमसुरभिष्व अधवखेदं नयेथा
लक्ष्मीं पश्यंल ललितवनितापादरागाङ्कितेषु॥१.३५॥

भर्तुः कण्ठच्चविर इति गणैः सादरं वीक्ष्यमाणः
पुण्यं यायास त्रिभुवनगुरोर धाम चण्डीश्वरस्य
धूतोद्यानं कुवलयरजोगन्धिभिर गन्धवत्यास
तोयक्रीडानिरतयुवतिस्नानतिक्तैर मरुद्भिः॥१.३६॥

अप्य अन्यस्मिञ जलधर महाकालम आसाद्य काले
स्थातव्यं ते नयनविषयं यावद अत्येति भानुः
कुर्वन सन्ध्यावलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम
आमन्द्राणां फलम अविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम॥१.३७॥

पादन्यासैः क्वणितरशनास तत्र लीलावधूतै
रत्नच्चायाखचितवलिभिश चामरैः क्लान्तहस्ताः
वेश्यास त्वत्तो नखपदसुखान प्राप्य वर्षाग्रबिन्दून
आमोक्ष्यन्ते त्वयि मधुकरश्रेणिदीर्घान कटक्षान॥१.३८॥

पश्चाद उच्चैर्भुजतरुवनं मण्डलेनाभ्लीनः
सांध्यं तेजः प्रतिनवजपापुष्परक्तं दधानः
नृत्तारम्भे हर पशुपतेर आर्द्रनागाजिनेच्चां
शान्तोद्वेगस्तिमितनयनं दृष्टभक्तिर भवान्या॥१.३९॥

गच्चन्तीनां रमाणवसतिं योषितां तत्र नक्तं
रुद्धालोके नरपतिपथे सूचिभेद्यैस तमोभिः
सौदामन्या कनकनिकषस्निग्धया दर्शयोर्वीं
तोयोत्सर्गस्तनितमुहरो मा च भूर्विक्लवास्ताः॥१.४०॥

तां कस्यांचिद भवनवलभौ सुप्तपारावतायां
नीत्वा रात्रिं चिरविलसनात खिन्नविद्युत्कलत्रः
दृष्टे सूर्ये पुनरपि भवान वाहयेदध्वशेषं
मन्दायन्ते न खलु सुहृदामभ्युपतार्थकृत्याः॥१.४१॥

तस्मिन काले नयनसलिअं योषितां खण्डितानां
शान्तिं नेयं प्रणयिभिर अतो वर्त्म भानोस त्यजाशु
प्रालेयास्त्रं कमलवदनात सोऽपि हर्तुं नलिन्याः
प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररुधि स्यादनल्पभ्यसूयः॥१.४२॥

गम्भीरायाः पयसि सरितश चेतसीव प्रसन्ने
चायात्मापि प्रकृतिसुभगो लप्स्यते ते प्रवेशम
तस्माद अस्याः कुमुदविशदान्य अर्हसि त्वं न धैर्यान
मोघीकर्तुं चटुलशफोरोद्वर्तनप्रेक्षितानि॥१.४३॥

तस्याः किंचित करधृतम इव प्राप्त्वाईरशाखं
हृत्वा नीलं सलिलवसनं मुक्तरोधोनितम्बम
प्रस्थानं ते कथम अपि सखे लम्बमानस्य भावि
ज्ञातास्वादो विवृतजघनां को विहातुं समर्था॥१.४४॥

त्वन्निष्यन्दोच्च्वसितवसुधागन्धसम्पर्करम्यः
स्रोतोरन्ध्रध्वनितसुभगं दन्तिभिः पीयमानः
नीचैर वास्यत्य उपजिगमिषोर देवपूर्वं गिरिं ते
शीतो वायुः परिणमयिता काननोदुम्बराणाम॥१.४५॥

तत्र स्कन्दं नियतवसतिं पुष्पमेघीकृतात्मा
पुष्पासारैः स्नपयतु भवान व्योमगङ्गाजलार्द्रैः
रक्षाहेतोर नवशशिभृता वासवीनां चमूनाम
अत्यादित्यं हुतवहमुखे संभृतं तद धि तेयः॥१.४६॥

ज्योतिर्लेखावलयि गलितं यस्य बर्हं भवानी
पुत्रप्रेम्णा कुवलयदलप्रापि कर्णे करोति
धौतापाङ्गं हरशशिरुचा पावकेस तं मयूरं
पश्चाद अद्रिग्रहणगुरुभिर गर्जितैर नर्तयेथाः॥१.४७॥

आराद्यैनं शरवणभवं देवम उल्लङ्घिताध्वा
सिद्धद्वन्द्वैर जलकणभयाद वीणिभिर मुक्तमार्गः
व्यालम्बेथाः सुरभितनयालम्भजां मानयिष्यन
स्रोतोमूर्त्या भुवि परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्तिम॥१.४८॥

त्वय्य आदातुं जलम अवनते शार्ङ्गिणो वर्णचौरे
तस्याः सिन्धोः पृथुम अपि तनुं दूरभावात प्रवाहम
प्रेक्षिष्यन्ते गगनगतयो नूनम आवर्ज्य दृष्टिर
एकं भुक्तागुणम इव भुवः स्थूलमध्येन्द्रनीलम॥१.४९॥

ताम उत्तीर्य व्रज परिचितभ्रूलताविभ्रमाणां
पक्ष्मोत्क्षेपाद उपरिविलसत्कृष्णशारप्रभाणाम
कुन्दक्षेपानुगमधुकरश्रीमुषाम आत्मबिम्बं
पात्रीकुर्वन दशपुरवधूनेत्रकौतूहलानाम॥१.५०॥

ब्रह्मावर्तं जनपदम अथ च्चायया गाहमानः
क्षेत्रं क्षत्रप्रधनपिशुनं कौरवं तद भजेथाः
राजन्यानां शितशरशतैर यत्र गाण्डीवधन्वा
धारापातैस त्वम इव कमलान्य अभ्यवर्षन मुखानि॥१.५१॥

हित्वा हालाम अभिमतरसां रेवतीलोचनाङ्कां
बन्धुप्रीत्या समरविमुखो लाङ्गली याः सिषेवे
कृत्वा तासाम अधिगमम अपां सौम्य सारस्वतीनाम
अन्तः शुद्धस त्वम अपि भविता वर्णमात्रेण कृष्णः॥१.५२॥

तस्माद गच्चेर अनुकनखलं शैलराजावतीर्णां
जाह्नोः कन्यां सगरतनयस्वर्गसोपानपङ्क्तिम
गौरीवक्त्रभ्रुकुटिरचनां या विहस्येव फेनैः
शम्भोः केशग्रहणम अकरोद इन्दुलग्नोर्मिहस्ता॥१.५३॥

तस्याः पातुं सुरगज इव व्योम्नि पश्चार्धलम्बी
त्वं चेद अच्चस्फटिकविशदं तर्कयेस तिर्यग अम्भः
संसर्पन्त्या सपदि भवतः स्रोतसि च्चाययासौ
स्याद अस्थानोपगतयमुनासंगमेवाभिरामा॥१.५४॥

आसीनानां सुरभितशिलं नाभिगन्धैर मृगाणां
तस्या एव प्रभवम अचलं प्राप्य गौरं तुषारैः
वक्ष्यस्य अध्वश्रमविनयेन तस्य शृङ्गे निषण्णः
शोभां शुभ्रां त्रिनयनवृषोत्खातपङ्कोपमेयम॥१.५५॥

तं चेद वायौ सरति सरलस्कन्धसंघट्टजन्मा
बाधेतोल्काक्षपितचमरीबालभारो दवाग्निः
अर्हस्य एनं शमयितुम अलं वारिधारासहस्रैर
आपन्नार्तिप्रशमनफलाः संपदो ह्य उत्तमानाम॥१.५६॥

ये संरम्भोत्पतनरभसाः स्वाङ्गभङ्गाय तस्मिन
मुक्ताध्वानं सपदि शरभा लङ्घयेयुर भवन्तम
तान कुर्वीथास तुमुलकरकावृष्टिपातावकीर्णन
के वा न स्युः परिभवपदं निष्फलारम्भयत्नाः॥१.५७॥

तत्र व्यक्तं दृषदि चरणन्यासम अर्धेन्दुमौलेः
शश्वत सिद्धैर उपचितबलिं भक्तिनम्रः परीयाः
यस्मिन दृष्टे करणविगमाद ऊर्ध्वम उद्धूतपापाः
कल्पिष्यन्ते स्थिरगणपदप्राप्तये श्रद्दधानाः॥१.५८॥

शब्दायन्ते मधुरम अनिलैः कीचकाः पूर्यमाणाः
संरक्ताभिस त्रिपुरविजयो गीयते किंनराभिः
निर्ह्रादस ते मुरज इव चेत कन्दरेषु ध्वनिः स्यात
संगीतार्थो ननु पशुपतेस तत्र भावी समग्रः॥१.५९॥

प्रालेयाद्रेर उपतटम अतिक्रम्य तांस तान विशेषान
हंसद्वारं भृगुपतियशोवर्त्म यत क्रौञ्चरन्ध्रम
तेनोदीचीं दिशम अनुसरेस तिर्यग आयामशोभी
श्यामः पादो बलिनियमनाभ्युद्यतस्येव विष्णोः॥१.६०॥

गत्वा चोर्ध्वं दशमुखभुजोच्च्वासितप्रस्थसंधेः
कैलासस्य त्रिदशवनितादर्पणस्यातिथिः स्याः
शृङ्गोच्च्रायैः कुमुदविशदैर यो वितत्य स्थितः खं
राशीभूतः प्रतिदिनम इव त्र्यम्बकस्यट्टहासः॥१.६१॥

उत्पश्यामि त्वयि तटगते स्निग्धभिन्नाञ्जनाभे
सद्यः कृत्तद्विरददशनच्चेदगौरस्य तस्य
शोभाम अद्रेः स्तिमितनयनप्रेक्षणीयां भवित्रीम
अंसन्यस्ते सति हलभृतो मेचके वाससीव॥१.६२॥

हित्वा तस्मिन भुजगवलयं शम्भुना दत्तहस्ता
क्रीडाशैले यदि च विचरेत्पादचारेण गौरी
भङ्गीभक्त्या विरचितवपुः स्तम्भितान्तर्जलौघः
सोपानत्वं कुरु मणितटारोहणायाग्रयायी॥१.६३॥

तत्रावश्यं वलयकुलिशोद्धट्टनोद्गीर्णतोयं
नेष्यन्ति त्वां सुरयुवतयो यन्त्रधारागृहत्वम
ताभ्यो मोक्षस तव यदि सखे घर्मलब्धस्य न स्यात
क्रीडालोलाः श्रवणपरुषैर गर्जितैर भाययेस ताः॥१.६४॥

हेमाम्भोजप्रसवि सलिलं मानसस्याददानः
कुर्वन कामं क्षणमुखपटप्रीतिम ऐरावतस्य
धुन्वन कल्पद्रुमकिसलयान यंशुकानीव वातैर
नानाचेष्टैर जलदललितैर निर्विशेस तं नगेन्द्रम॥१.६५॥

तस्योत्सङ्गे प्रणयिन इव स्रस्तगङ्गादुकूलां
न त्वं दृष्ट्वा न पुनर अलकां ज्ञास्यसे कामचारिन
या वः काले वहति सलिलोद्गारम उच्चैर विमाना
मुक्ताजालग्रथितम अलकं कामिनीवाभ्रवृन्दम॥१.६६॥

Tuesday, 26 July 2022

HASRAT JAIPURI KE MASHUR SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...


हसरत जयपुरी के मशहूर शेर 



हसरत जयपुरी का जन्म जयपुर में इकबाल हुसैन के रूप में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजी का अध्ययन बस शुरुआती स्तर तक ही किया था, और अपनी आगे की शिक्षा अपने नाना फिदा हुसैन "फिदा" से उर्दूऔर फारसी में ग्रहण की। जब वह लगभग बीस वर्ष के थे तब उन्होंने कविता लिखना शुरू किया था। उसी समय, उन्हें उनके पड़ोस में रहने वाली एक हिन्दु लड़की राधा से प्यार हो गया। हसरत ने इस लड़की को लिखे एक प्रेम पत्र के बारे में, एक साक्षात्कार में कहा कि प्रेम कोई धर्म नहीं जानता है। हसरत जयपुरी के हवाले से कहा गया, "यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि एक मुस्लिम लड़के को एक मुस्लिम लड़की से ही प्यार होना चाहिए। मेरा प्यार चुप था, लेकिन मैंने उसके लिए एक कविता लिखी थी, "ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर, के तुम नाराज़ न होना” यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है कि प्रेम पत्र वास्तव में राधा को दिया गया था या नहीं। लेकिन अनुभवी फिल्म निर्माता राज कपूर ने इसे अपनी फिल्म संगम (1964 की हिंदी फिल्म) में शामिल किया और यह गीत पूरे भारत में 'हिट' हो गया।

शीर्षक गीत लिखने के लिए प्रसिद्ध हसरत जयपुरी का जन्म 15 अप्रैल 1918 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम इक़बाल हुसैन है। इनका करियर एक बस कंडक्टर के रूप में शुरू हुआ इसके बाद वह मुशायरों में भी शिरकत करने लगे। एक मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने उनको सुना और अपने बेटे राजकपूर से हसरत जयपुरी से मिलने की बात कही। और राज कपूर से मिलने के बाद उन्होंने 'बरसात' फ़िल्म का गाना 'जिया बेकरार है छाई बहार है आजा मोरे बालमा तेरा इंतज़ार है' लिखा तथा इस गाने की धुन शंकर जयकिशन ने बनायी। इस फ़िल्म से शंकर जयकिशन भी अपना कैरियर शुरू कर रहे थे। यह गाना बहुत हिट हुआ और इसके बाद हसरत साहब रुके नहीं। हसरत साहब ने फिल्मों में खूब गीत लिखे। गीतों के अलावा उन्होंने ग़ज़लें भी लिखी, शेर भी कहे। पेश कर रहे हैं हसरत जयपुरी के कुछ शेर-


दीवार है दुनिया इसे राहों से हटा दे
हर रस्म-ए-मोहब्बत को मिटाने के लिए आ

वो सबा महकी महकी


ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी

हम रातों को उठ उठ के जिन के लिए रोते हैं
वो ग़ैर की बांहों में आराम से सोते हैं

थाम तो लो मैं नशे में हूं


उस मैकदे की राह मे गिर जाऊं न कहीं
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूं

प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियां अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं

नज़र से बचा कर चले गए


कहने को वो हसीन थे आंखें थीं बेवफ़ा
दामन मेरी नज़र से बचा कर चले गए

जाने क्यों तेज़ हुई जाती है दिल की धड़कन
चुटकियां लेती है क्यों सीने में मीठी सी चुभन

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मेरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूं नहीं देते

किस वास्ते लिक्खा है


हम अश्क़ जुदाई के गिरने ही नहीं देते
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं

किस वास्ते लिक्खा है हथेली पे मिरा नाम
मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते

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Tuesday, 5 July 2022

AMRITA PRITAM KI MASHUR KAVITAYE....

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...



अमृता प्रीतम (१९१९-२००५) पंजाबी के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक थी। पंजाब (भारत) के गुजराँवाला जिले में पैदा हुईं अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।[1]


पहचान

तुम मिले
तो कई जन्म
मेरी नब्ज़ में धड़के
तो मेरी साँसों ने तुम्हारी साँसों का घूँट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए--

एक गुफा हुआ करती थी
जहाँ मैं थी और एक योगी
योगी ने जब बाजुओं में लेकर
मेरी साँसों को छुआ
तब अल्लाह क़सम!
यही महक थी जो उसके होठों से आई थी--
यह कैसी माया कैसी लीला
कि शायद तुम ही कभी वह योगी थे
या वही योगी है--
जो तुम्हारी सूरत में मेरे पास आया है
और वही मैं हूँ... और वही महक है...

- अमृता प्रीतम



सिगरेट


सिगरेट

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वो ही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,

देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!

- अमृता प्रीतम

कुफ़्र

अमृता प्रीतम और इमरोज़
कुफ़्र

आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की

सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली

आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली

यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे

- अमृता प्रीतम

शहर

अमृता प्रीतम
शहर

मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है
सड़कें - बेतुकी दलीलों-सी…
और गलियाँ इस तरह
जैसे एक बात को कोई इधर घसीटता
कोई उधर

हर मकान एक मुट्ठी-सा भिंचा हुआ
दीवारें-किचकिचाती सी
और नालियाँ, ज्यों मुँह से झाग बहता है

यह बहस जाने सूरज से शुरू हुई थी
जो उसे देख कर यह और गरमाती
और हर द्वार के मुँह से
फिर साईकिलों और स्कूटरों के पहिये
गालियों की तरह निकलते
और घंटियाँ-हार्न एक दूसरे पर झपटते

जो भी बच्चा इस शहर में जनमता
पूछता कि किस बात पर यह बहस हो रही?
फिर उसका प्रश्न ही एक बहस बनता
बहस से निकलता, बहस में मिलता…

शंख घंटों के साँस सूखते
रात आती, फिर टपकती और चली जाती

पर नींद में भी बहस ख़तम न होती
मेरा शहर एक लम्बी बहस की तरह है….

- अमृता प्रीतम

एक मुलाक़ात

अमृता प्रीतम
एक मुलाक़ात

मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया

हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..

लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये

पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?

मेरे शहर की हर गली संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली

सोचा कि अगर तू कहीं मिले
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे

और नीची छतों
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….

पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया

मैं अकेला किनारा
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुन्द्र का तूफान
समुन्द्र को लौटा दिया….

अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है…..

- अमृता प्रीतम



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Monday, 20 June 2022

MOMIN KHAN KE MASHUR SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...



हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन का ताल्लुक़ एक कश्मीरी घराने से था। इनका असल नाम मोहम्मद मोमिन था। इनके दादा हकीम मदार ख़ाँ शाह आलम के ज़माने में दिल्ली आए और शाही हकीमों में शामिल हो गए। मोमिन दिल्ली के कूचा चेलान में 1801 ई॰ में पैदा हुए। इनके दादा को बादशाह की तरफ़ से एक जागीर मिली थी जो नवाब फ़ैज़ ख़ान ने ज़ब्त करके एक हज़ार रुपये सालाना पेंशन मुक़र्रर कर दी थी। ये पेंशन इनके ख़ानदान में जारी रही। मोमिन ख़ान का घराना बहुत मज़हबी था।

मोमिन ख़ां मोमिन एक प्रसिद्ध उर्दू शायर हैं और वह ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन थे। पेश हैं मोमिन के लिखे चुनिंदा शेर


आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ



उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे

उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में




उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया



कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या

किसी का हुआ आज कल था किसी का




किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का



ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम

तुम मेरे पास होते हो गोया




तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता



तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता

थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब




थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब



रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
 

#MOMIM KE MASHUR SHER #MOMIM KHAN LIFE #MOMIM KHAN JIVAN PARICHAY

Tuesday, 7 June 2022

BASIR BADR KE FAMOUS SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...

BASIR BADR KE FAMOUS SHER





डॉ॰ बशीर बद्र (जन्म १५ फ़रवरी १९३६) को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतेह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है। साहित्य और नाटक आकेदमी में किए गये योगदानो के लिए उन्हें १९९९ में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।

इनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है। भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था। आज के मशहूर शायर और गीतकार नुसरत बद्र इनके सुपुत्र हैं।

डॉ॰ बशीर बद्र 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर हैं। दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं। बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं। ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र साहब की ख़ासियत है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई है।
बशीर बद्र उर्दू की मक़बूल हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने शेर-ओ-शायरी को नया मुकाम दिया, पेश हैं उनकी कलम से निकले ये चंद अशआर


अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो



अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया

अगर फ़ुर्सत मिले




अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है



अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा

अजीब शख़्स है




अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे



इसीलिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूँ मैं

उड़ने दो परिंदों को




उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा मे
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते



उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

कितनी सच्चाई से




कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा



चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी


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Wednesday, 18 May 2022

JAUN ELIA KE FAMOUS SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...

JAUN ELIA KE FAMOUS SHER




जॉन एलिया का जन्म 14 दिसंबर 1931 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा में एक प्रमुख परिवार में हुआ था। वह अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके पिता अल्लामा शफ़ीक़ हसन एलियाह एक खगोलशास्त्री और कवि होने के अलावा कला और साहित्य से भी गहरे जुड़े थे। इस सीखने के माहौल ने उसी तर्ज पर जॉन की प्रकृति को आकार दिया। उन्होंने अपनी पहली उर्दू कविता महज 8 साल की उम्र में लिखी थी।





उर्दू अदब के मक़बूल नामों में से एक हैं हजरत जौन एलिया, जिन्होंने शायरी की लीक को एक नया मोड़ दिया इसलिए वे सीधे दिल में उतरे और उनके शेर महबूबों के राग बन गए। पेश हैं जौन एलिया के लिखे बेहतरीन शेर


अपने सब यार काम कर रहे हैं
और हम हैं कि नाम कर रहे हैं


अब तो हर बात याद रहती है
ग़ालिबन मैं किसी को भूल गया

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं




अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या


इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊँ
वगरना यूँ तो किसी की नहीं सुनी मैंने

उस गली ने ये सुन के सब्र किया




उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं


एक ही तो हवस रही है हमें
अपनी हालत तबाह की जाए

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में




क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं


कैसे कहें कि तुझ को भी हम से है वास्ता कोई
तू ने तो हम से आज तक कोई गिला नहीं किया

काम की बात मैंने की ही नहीं




काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं


कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं




कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे


कौन से शौक़ किस हवस का नहीं
दिल मेरी जान तेरे बस का नहीं

ख़र्च चलेगा अब मेरा




ख़र्च चलेगा अब मेरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं


जमा हम ने किया है ग़म दिल में
इस का अब सूद खाए जाएँगे

ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को




ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को
अपने अंदाज़ से गँवाने का


ज़िंदगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मोहब्बत में

जो गुज़ारी न जा सकी हम से




जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है


'जौन' दुनिया की चाकरी कर के
तूने दिल की वो नौकरी क्या की

नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम




नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम


नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी
तो फिर दुनिया की परवाह क्यूँ करें हम

#JAUN ELIA KE MASHUR SHER #JAUN ELIA SHARABI
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