Monday 20 June 2022

MOMIN KHAN KE MASHUR SHER

Shayar ki Kalam se dil ke Arman...



हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन का ताल्लुक़ एक कश्मीरी घराने से था। इनका असल नाम मोहम्मद मोमिन था। इनके दादा हकीम मदार ख़ाँ शाह आलम के ज़माने में दिल्ली आए और शाही हकीमों में शामिल हो गए। मोमिन दिल्ली के कूचा चेलान में 1801 ई॰ में पैदा हुए। इनके दादा को बादशाह की तरफ़ से एक जागीर मिली थी जो नवाब फ़ैज़ ख़ान ने ज़ब्त करके एक हज़ार रुपये सालाना पेंशन मुक़र्रर कर दी थी। ये पेंशन इनके ख़ानदान में जारी रही। मोमिन ख़ान का घराना बहुत मज़हबी था।

मोमिन ख़ां मोमिन एक प्रसिद्ध उर्दू शायर हैं और वह ग़ालिब और ज़ौक़ के समकालीन थे। पेश हैं मोमिन के लिखे चुनिंदा शेर


आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ



उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे

उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में




उलझा है पाँव यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में
लो आप अपने दाम में सय्याद आ गया



कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या

किसी का हुआ आज कल था किसी का




किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का



ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें कि हो गए नाचार जी से हम

तुम मेरे पास होते हो गोया




तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता



तुम हमारे किसी तरह न हुए
वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता

थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब




थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब



रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आप का दिल भी मेरी तरह
 

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