इनका जन्म उत्तर प्रदेश, भारत में 22 अगस्त 1924 में हुआ था। इनका बचपन का नाम अज़ीज़ जहान था। वे केवल तीन वर्स्ष की थी जब उन्के पिता, मौलवी बदरूल हसन की मृत्यु हो गयी थी और उनकी माँ ने उनका का पालन-पोषण किया। यह 12 वर्ष के उम्र में ही कविता बनाने लगीं। नुरून हसन जाफरी से लखनऊ में 29 जनवरी 1947 को शादी हो जाती है। शादी के बाद वह अपने पति के साथ लखनऊ से कराची चले जाते हैं। जहाँ नुरून अँग्रेजी और उर्दू समाचार पत्र में एक लेखक बन जाते हैं। 3 दिसम्बर 1995 को नुरून की मौत हो जाती है। इसके बाद वह कराची से टोरोंटो में चले जाती हैं। जहाँ वह उर्दू का प्रचार करती हैं।
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
इस क़दर तेज़ हवा के झोंके
शाख़ पर फूल खिला था शायद
आंसू जो रुका वो किश्त-ए-जां में
बारिश की मिसाल आ गया है
मिरा सुकूं भी मिरे आंसुओं के बस में था
ये मेहमां मिरी दुनिया निखारने आते
कुछ यादगार अपनी मगर छोड़ कर गईं
जाती रुतों का हाल दिलों की लगन सा है
सौ सौ तरह लिखा तो सही हर्फ़-ए-आरज़ू
इक हर्फ़-ए-आरज़ू ही मिरी इंतिहा है क्या
आलम ही और था जो शनासाइयों में था
जो दीप था निगाह की परछाइयों में था
तुम पास नहीं हो तो अजब हाल है दिल का
यूं जैसे मैं कुछ रख के कहीं भूल गई हूं
इस क़दर तेज़ हवा के झोंके
शाख़ पर फूल खिला था शायद
दिल के गुंजान रास्तों पे कहीं
तेरी आवाज़ और तू है अभी
YE BHI PADIYE :DAAG DEHLVI KE MASHUR SHER