Shayar ki Kalam se dil ke ArMan
ये एक पिता की सच्ची कहानी कविता के रूप में special father's day के दिन लिखी है!
जो एक भावुक कविता जो आपको अपने पिता का दर्द बयां करेगी!
1.पिता कहने को एक छोटा सा शब्द पर वास्तविकता में काफी बड़ा अर्थ
तो आओ सुनाई एक पिता की
कहानी शायरी की जुबानी
उस आदमी की कुर्बानी जिसकी किसी ने ना मानी
मै छोटा था और ना समझ भी
वो मुझे अपनी रोटी के बीच का हिस्सा खिलाता था!
और खुद भुका ही रह जाता था!
दिन भर वो मेहनत करता था!
फिर भी शाम को खुश होकर ही घर आता था!
खुद ना पढ़ पाया पर मुझे हमेशा प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया!
अनपढ़ ना रह जाऊं यही उसकी तकलीफ थी,
इसलिए उसने हमेशा मुझे दुनिया भर से लड़ना सिखाया!
कभी जिंदगी में उसने मुझपे हाथ ना उठाया!
कभी डाटा भी तो मैं ही उसपे चिलाया !
सर्द रातों में खुद नंगे बदन रह के भी उसने मुझे कम्बल ओडाया!
खुद 2 पैसे बचाने को हमेशा साइकिल पे चला!
पर मुझे हमेशा बाइक पे रास्ता दिखाया!
मेरे सामने मुझे बुरा भला कह खुद बुरा कहलाया!
और अन्दर ही अंदर खुद रोकर अपना रोना छिपाया!
उसकी तकलीफ का अंदाजा ना था,
इसलिए मै उसे कोसता था!
पर उसे आने वाली हर तकलीफ का अंदाजा था!
वो चाहता था में दुनिया से लड़ सकु,
इसलिए खुद मुझे समझाता था!
साथ ना दिया उसका किसी परिवारवाले ने,
पर वो खुद शरीर से लाचार पर बुलंद हौसलों का पुलिंदा था!
बिस्तर पर गुजारे उसने ना जाने कितने महीने,
पर फिर भी उसे हमारा ही ख्याल था!
खुद की तकलीफ से ज्यादा उसे,
हमारी जिंदगी संवारने से प्यार था!
चल ना पाया तो,
लकड़ी के सहारे उसने लडने का बीड़ा उठाया था!
उसकी इसी तकलीफ ने हमें इस लायक बनाया था!
वो पिता था साहेब वो पिता था,
जो अंगारों पे जिस्म जला पिता कहलाया था!
जो अंगारों पे जिस्म जला पिता कहलाया था!
ये एक पिता की सच्ची कहानी कविता के रूप में special father's day के दिन लिखी है!
जो एक भावुक कविता जो आपको अपने पिता का दर्द बयां करेगी!
1.पिता कहने को एक छोटा सा शब्द पर वास्तविकता में काफी बड़ा अर्थ
तो आओ सुनाई एक पिता की
कहानी शायरी की जुबानी
उस आदमी की कुर्बानी जिसकी किसी ने ना मानी
मै छोटा था और ना समझ भी
वो मुझे अपनी रोटी के बीच का हिस्सा खिलाता था!
और खुद भुका ही रह जाता था!
दिन भर वो मेहनत करता था!
फिर भी शाम को खुश होकर ही घर आता था!
खुद ना पढ़ पाया पर मुझे हमेशा प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया!
अनपढ़ ना रह जाऊं यही उसकी तकलीफ थी,
इसलिए उसने हमेशा मुझे दुनिया भर से लड़ना सिखाया!
कभी जिंदगी में उसने मुझपे हाथ ना उठाया!
कभी डाटा भी तो मैं ही उसपे चिलाया !
सर्द रातों में खुद नंगे बदन रह के भी उसने मुझे कम्बल ओडाया!
खुद 2 पैसे बचाने को हमेशा साइकिल पे चला!
पर मुझे हमेशा बाइक पे रास्ता दिखाया!
मेरे सामने मुझे बुरा भला कह खुद बुरा कहलाया!
और अन्दर ही अंदर खुद रोकर अपना रोना छिपाया!
उसकी तकलीफ का अंदाजा ना था,
इसलिए मै उसे कोसता था!
पर उसे आने वाली हर तकलीफ का अंदाजा था!
वो चाहता था में दुनिया से लड़ सकु,
इसलिए खुद मुझे समझाता था!
साथ ना दिया उसका किसी परिवारवाले ने,
पर वो खुद शरीर से लाचार पर बुलंद हौसलों का पुलिंदा था!
बिस्तर पर गुजारे उसने ना जाने कितने महीने,
पर फिर भी उसे हमारा ही ख्याल था!
खुद की तकलीफ से ज्यादा उसे,
हमारी जिंदगी संवारने से प्यार था!
चल ना पाया तो,
लकड़ी के सहारे उसने लडने का बीड़ा उठाया था!
उसकी इसी तकलीफ ने हमें इस लायक बनाया था!
वो पिता था साहेब वो पिता था,
जो अंगारों पे जिस्म जला पिता कहलाया था!
जो अंगारों पे जिस्म जला पिता कहलाया था!
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